गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

देखा जब से तुम्हें









देखा जब से तुम्हें लगे  सम्भावना
तुम  ही  हो प्रेम की मेरे उद्भावना
उर की व्याकुलता मिट जाए तुम जो मिलो
मेरे  हिय की तुम्हीं पावन  भावना  

प्रति  तुम्हारे  मेरे  मन में सद्भाव है
प्रेम करना  प्रकृति का भी स्वभाव है
मैं  भी  पूरा हो जाऊं  मिले प्रेम जो
प्रेम  का  मात्र  जीवन  में अभाव है

स्वप्न  में भी  तुम्हारे  ही सब रंग हैं
बिन  तुम्हारे  स्वप्न  सारे बाद रंग हैं
प्रति पल,प्रति क्षण बस  तुम्हीं सूझती
साथ  हो  जो तुम्हारा  तो जग संग है  

मेरे  उर  की  संसद   पड़ी  भंग  है
मेरी   दिनचर्या   आवारा   बेढंग  है
तुम जो आओगी तो  बात बन जायेगी
फड़क  के  कह  रहा  दाहिना अंग है 



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें