रविवार, 24 मार्च 2019

दिन दिन भारी होता रतिया पहड़वा


दिन दिन भारी होता रतिया पहड़वा
नाहकै में डोली लइनै मोर कंहरवा
चार दिन संगे रहनै गइनै फिर बिदेसवा
नाजुक उमिरिया में छोड़लैं मजधरवा


अमवा बउरि गइनै मनई चहकि गइनैं
खेतिया के चढ़ल जवानी मोरे रमवाँ
कइसे गुजारी ई समइया मोरे रमवाँ


आईगै बसंत कुल और हलचल बा
बुढ़वन के चेहरन पे चढ़ी गयल रंग बा
चारो ओर खुसहाली मेड़े मेड़े हरियाली
हमरो करेजवा में धुकनी उठत बा


धीरे-धीरे हँसी-हँसी आवत बा फगुनवा
देवर जेठ करैं कानाफूसी मोरे रमवाँ
बुढ़ऊ से हमके बचावा मोरे रमवाँ


हमरो उमिरि बाटै कबले सम्हारी
दिनवाँ में दस दाइं दुआरा निहारी
समझाई मनवा के झूठ-मूठ केतना
तोहरे परेमवा में गइली जिनगी हारी


छोड़ी के बिदेसवा तू घर आवा सइयां
तोरे बिन सूखल जात बाटी मोरे रमवाँ
नाहित संग लेइ चला मोरे रमवाँ



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक – poetpawan50@gmail.com



उसको मिली थी इज्जतें


उसको  मिली थी  इज्जतें जिन्दगी के बाद
समझा वो पूरी जिन्दगी को बेखुदी के बाद

जब तक खुदा से दूर था तब तक था आदमी
खुद  ही  ख़ुदा वो हो गया अब बंदगी के बाद

पानी से ही बुझ जाती अगर प्यास होती तो
हैवानियत  बढ़ी  थी  उसमें तिश्नगी के बाद  

बेटे  से  आगे बेटी को देखा तो लगा आज
मौसम है आया अच्छा  जैसे सदी के बाद

बीमार था सब जानते थे पर सभी चुप थे
बाद  सब  दौड़े के ज्यों सूखी नदी के बाद

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

रविवार, 17 मार्च 2019

शब्दों के बिन अब होगा संवाद प्रिये


शब्दों के बिन अब होगा संवाद प्रिये
प्रेम समर्पण होता नहीं विवाद प्रिये
शब्द अखरते हैं अक्सर उदात्त प्रेम में
मौन श्रेष्ठ है बस कर लो अनुवाद प्रिये


करुणा की भी अपनी भाषा होती है
प्रेम की इक मर्यादित भाषा होती है
शब्दों की वैशाखी अब तुम मत लेना
आखों की भी मोहक भाषा होती है


प्रेम समझने चले भी जितने परे हुए
जिनको ना विश्वास प्रेम से डरे हुए
केवल ये विश्वास का रिश्ता है प्यारे
टिके वही जो डोर हैं इसकी धरे हुए   


अन्तस् से अन्तस् का रिश्ता होता है
बाहर वाला रिश्ता अक्सर खोता है
प्रेम कभी भी जिस्मों का संबंध नहीं
प्रेम  रूह  से रूह का नाता होता है



पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com

शनिवार, 16 मार्च 2019

अब जब मैं किसी सभा


अब जब मैं किसी सभा या कार्यक्रम में
नहीं दिखाई दे रहा हूँ
कहीं भी चर्चा में नहीं हूँ
बाहर की दुनिया में एक शान्ति है
मेरे बारे में
तब मैं अपने अंतस में
चर्चित हो रहा हूँ
मेरे बारे में मेरा अन्तस् कर रहा है
शानदार चर्चा, गर्मागर्म बहस
मेरे विचारों, मेरी मान्यताओं,
तथ्यों और योजनाओं को लेकर
मुझे लगता है
जब वह हो जाएगा संतुष्ट
फिर आयेगा अंदर से बाहर
और तब होगी मेरी स्थायी चर्चा
मेरे अलावा  करेंगे, सभी मेरी चर्चा



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

समय गिनता हूँ


आज कल समय गिनता हूँ
क्योंकि
समय ने मुझे गिनना छोड़ दिया है
मैं अब उसकी महत्वपूर्ण सूची में नहीं हूँ
किन्तु समय मेरी महत्व की सूची में है
मैं प्रतिक्षण समय को गिन रहा हूँ
ताकि उसे दो गुने समय से हरा सकूँ
 और वो लज्जित होकर  अपनी
सबसे महत्वपूर्ण सूची लिख सके
सम्मान के साथ, साफ़-साफ़ शब्दों में
और मैं सदा के लिए काल के मस्तक
हो सकूँ अंकित



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

बुधवार, 13 मार्च 2019

जीवन का धन एकाकीपन


जीवन  का धन एकाकीपन उसी को शब्द बनाता हूँ
मैं एकांत विरह का कवि हूँ वेदना का स्वर गाता हूँ
बाहर  देखा  भीड़  लगी  है  अंदर खड़ा अकेला हूँ
इसी  अकेलेपन  को  सुर  में  धीरे - धीरे गाता हूँ

ये  तो  मनरंजन  करते  हैं  मनोरंजन नहीं गीत मेरे
जिसको मन से मन ही सुन सके ऐसे गीत मैं गाता हूँ
सुख दुःख का बस निराकरण है सुख सच में केवल छल है
इसीलिये  मैं  सदा - सदा से दुःख के गीत ही गाता हूँ

सुख  के  गीत  जो  गाते हैं  जीवन  से  कट जाते हैं
मैं  तो  जीवन  का  गायक  हूँ  पीड़ा के स्वर गाता हूँ
गीत  तो  हैं  अंतर  की  वेदना हँसी में वे मर जाते हैं
वेदना  के  चीत्कार  को  ही  मैं  ढाल गीत में गाता हूँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

ह्रदय गीत का वो प्रेमी है


ह्रदय गीत का वो प्रेमी है जिसको सुनकर है खो जाता
मेरे गीतों को सुन करके बिन मौसम मधुमास भी आता
यूँ  ही  गीत  नहीं मेरे हैं ये हिय के मधुकोष से उपजे
मेरे गीत जो सुन लेते तो बिना कहे कुछ प्रेम हो जाता

मेरे  गीत  बांसुरी  के  सुर  और  भौंरों के गुंजन हैं
प्यास  अधर  के मेरे गीत हैं और आँखों के अंजन हैं
हिय  के  अंतरतम  भावों  को  स्पन्दित करने वाले
मेरे  गीत  परम  पावन  हैं  प्रेम के सच्चे नन्दन हैं

पुण्य  फले हैं कई जन्म के तब जाकर मेरे गीत हुए
बहुत  दुलारा, सेवा  की है तब  जाकर मेरे मीत हुए
शब्दों  की  माया  रचने  से  गीत  नहीं पैदा होते
पावन मन के भाव जो बहके शब्द लिपट कर गीत हुए

लिख  देना  भर  गीत नहीं हैं भावों की ये साधना है
करुणा  प्रेम  पक्ष  है इसका हिय की ये आराधना है
हिय  के  सोये  तारों  को भी जो स्पन्दित कर जाए
वो  ही पावन गीत जगत का उर की वही उपासना है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


मंगलवार, 12 मार्च 2019

मीत मिले हैं विरह गीत बन


मीत  मिले हैं विरह गीत बन
किससे निभायें प्रीत के बंधन
अपनों  में  विश्वासघात  की
चली  हुई है रीत सी अनबन

आश्वासन  मौके  पर  टूटे
गुब्बारे  विश्वास   के  फूटे
एक जिस्म दो जान के रिश्ते
स्वार्थ बस पल भर में छूटे

वर्षों  के  अनुभव से देखा
संबन्धों पर शक को फेंका
विश्वासों  की  हुई दलाली
चला  भरोसों का भी ठेका

नैतिकता  का  तेरा  मेरा
झूठा अहमक किया घनेरा
घिरा हुआ हूँ फिर भी अकेला
झूठी  मुस्कानों  का  सवेरा

बिना  लड़े  कुछ जीत गये हैं
कुछ  लड़ने  में  रीत गये हैं
एक बार  बस लब खोला था
सच  के कारण  मीत गये हैं

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 5 मार्च 2019

चलते फिरते गाता हूँ


जीवन  के दुःख  दर्दों वाले संघर्षों के गीत लिये
खेत,मेड़,खलिहान गली में चलते फिरते गाता हूँ
मेरे अनुभव ऊबड़–खाबड़ , ऊबड़-खाबड़ गीत मेरे
जैसे  वे  हैं, वैसा  ही मैं, चलते फिरते गाता हूँ

मैं देसी  माटी  का  कवि हूँ धूसर जैसे गीत मेरे
खुरदुरे शब्दों के संग अक्सर चलते फिरते गाता हूँ
प्रणय  गीत  गाते  बहु तेरे, मेरे  पल्ले दर्द घनेरे
ऐसे  में  भोगे  दर्दों  को  चलते फिरते  गाता हूँ

वेदना की अपनी मस्ती है दुःख की सबसे बड़ी कश्ती है
सोच – सोच  कश्ती  का जीवन, चलते  फिरते गाता हूँ
ये मंजूर खेती के बन्दे  ये  सब मेरे अपने हैं
इसीलिये  अक्सर  अपनों  की  चलते  फिरते  गाता हूँ

महल  अटारी  से  क्या  नाता  पगडन्डी  का नायक हूँ
घास - फूस  काँटे  से  यारी  चलते   फिरते  गाता  हूँ
मेरे  गीत  समर्पित  उनको जो  दुःख  दर्द  के साथी हैं
बन  करके  आवाज़  मैं  उनकी  चलते  फिरते गाता हूँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com