बुधवार, 13 मार्च 2019

जीवन का धन एकाकीपन


जीवन  का धन एकाकीपन उसी को शब्द बनाता हूँ
मैं एकांत विरह का कवि हूँ वेदना का स्वर गाता हूँ
बाहर  देखा  भीड़  लगी  है  अंदर खड़ा अकेला हूँ
इसी  अकेलेपन  को  सुर  में  धीरे - धीरे गाता हूँ

ये  तो  मनरंजन  करते  हैं  मनोरंजन नहीं गीत मेरे
जिसको मन से मन ही सुन सके ऐसे गीत मैं गाता हूँ
सुख दुःख का बस निराकरण है सुख सच में केवल छल है
इसीलिये  मैं  सदा - सदा से दुःख के गीत ही गाता हूँ

सुख  के  गीत  जो  गाते हैं  जीवन  से  कट जाते हैं
मैं  तो  जीवन  का  गायक  हूँ  पीड़ा के स्वर गाता हूँ
गीत  तो  हैं  अंतर  की  वेदना हँसी में वे मर जाते हैं
वेदना  के  चीत्कार  को  ही  मैं  ढाल गीत में गाता हूँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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