मंगलवार, 5 मार्च 2019

चलते फिरते गाता हूँ


जीवन  के दुःख  दर्दों वाले संघर्षों के गीत लिये
खेत,मेड़,खलिहान गली में चलते फिरते गाता हूँ
मेरे अनुभव ऊबड़–खाबड़ , ऊबड़-खाबड़ गीत मेरे
जैसे  वे  हैं, वैसा  ही मैं, चलते फिरते गाता हूँ

मैं देसी  माटी  का  कवि हूँ धूसर जैसे गीत मेरे
खुरदुरे शब्दों के संग अक्सर चलते फिरते गाता हूँ
प्रणय  गीत  गाते  बहु तेरे, मेरे  पल्ले दर्द घनेरे
ऐसे  में  भोगे  दर्दों  को  चलते फिरते  गाता हूँ

वेदना की अपनी मस्ती है दुःख की सबसे बड़ी कश्ती है
सोच – सोच  कश्ती  का जीवन, चलते  फिरते गाता हूँ
ये मंजूर खेती के बन्दे  ये  सब मेरे अपने हैं
इसीलिये  अक्सर  अपनों  की  चलते  फिरते  गाता हूँ

महल  अटारी  से  क्या  नाता  पगडन्डी  का नायक हूँ
घास - फूस  काँटे  से  यारी  चलते   फिरते  गाता  हूँ
मेरे  गीत  समर्पित  उनको जो  दुःख  दर्द  के साथी हैं
बन  करके  आवाज़  मैं  उनकी  चलते  फिरते गाता हूँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
  



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