मंगलवार, 12 मार्च 2019

मीत मिले हैं विरह गीत बन


मीत  मिले हैं विरह गीत बन
किससे निभायें प्रीत के बंधन
अपनों  में  विश्वासघात  की
चली  हुई है रीत सी अनबन

आश्वासन  मौके  पर  टूटे
गुब्बारे  विश्वास   के  फूटे
एक जिस्म दो जान के रिश्ते
स्वार्थ बस पल भर में छूटे

वर्षों  के  अनुभव से देखा
संबन्धों पर शक को फेंका
विश्वासों  की  हुई दलाली
चला  भरोसों का भी ठेका

नैतिकता  का  तेरा  मेरा
झूठा अहमक किया घनेरा
घिरा हुआ हूँ फिर भी अकेला
झूठी  मुस्कानों  का  सवेरा

बिना  लड़े  कुछ जीत गये हैं
कुछ  लड़ने  में  रीत गये हैं
एक बार  बस लब खोला था
सच  के कारण  मीत गये हैं

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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