यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 23 नवंबर 2025

कैसे कहूं अम्मा की याद नहीं आती



अम्मा राजा बाबू बेटा कहकर खिलाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

गर्मी  में  आंचल  का   पंखा  बनाती

जाड़े  में  आंचल  से हमको छुपाती

छुटपन में आंचल से ढँककर सुलाती

आंचल से ढँककर ही दुधवा पिलाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

आँचल से मुँह पोंछ काजल लगाती

कटोरे में दूध भात रखकर खिलाती

रोता तो थपकी  दे  हमको सुलाती

हमको तो ताज़ा वो खुद बासी खाती

कैसे कहूं अम्मा की याद नहीं आती ?

 

बाहर को निकलूँ तो दही गुड़ खिलाती

नज़र  न लगे  काला  टीका  लगाती

आंचल से  पैसा खोल हमको  थमाती

दुर्गा माई रक्षा  करें  कहके बुदबुदाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती

 

बेटा  तो   सोना  है   सबको   बताती

कोई  आता  हमरा ही गुणगान गाती

जाने कैसे बाबू  होंगे बड़ी याद आती

कहते कहते अम्मा की आँख भर आती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

 

शाम होते चौखट पे करती दिया बाती

बाहर  जो आती  तो  घूँघट में आती

सारे लोग खा लेते  बचा  खुचा खाती

रोज रात  बाबू जी  के पैर वो दबाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती

 

 

जाकर भी अम्मा कभी हैं नहीं जाती

थोड़ा थोड़ा अम्मा सभी में बस जाती

पहला शब्द जीवन का अम्मा सिखाती

अले लेले बाबू  सोना  कहके दुलराती

उनके ही रक्त से बनी है अपनी काठी

 

अम्मा राजा बाबू बेटा कहकर खिलाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

  

      

   

 

 


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