यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 1 दिसंबर 2025

पवन तिवारी के दोहे


 

कलयुग निज हित देखता, पाप पुण्य बेकार!

जो यह सब है देखता,  उसपे  पड़ती  मार!!

 

जो जीवन में सत्य का, लिए पताका हाथ!

सबसे पहले आपने,  छोड़ें  उसका  साथ!!

 

पोथी महती चीज है, पर  व्यवहारिक ज्ञान!

बिन अनुभव के हो नहीं,सफल कोई विज्ञान!!

 

जिसके उर में डाह हो, मुख छाए संतोष!

उसके जीवन में सदा, फलता रहता दोष!!

 

अपने श्रम की आये से,मिले भले इक कौर!

किन्तु पाप की आय से, फले वंश ना बौर!!

 

जिसका पति कोइ ओर हो,प्रेमी हो कोइ ओर!

उसके जीवन में सदा, रहता  दुःख  का ठोर!!     

 


रविवार, 23 नवंबर 2025

कैसे कहूं अम्मा की याद नहीं आती



अम्मा राजा बाबू बेटा कहकर खिलाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

गर्मी  में  आंचल  का   पंखा  बनाती

जाड़े  में  आंचल  से हमको छुपाती

छुटपन में आंचल से ढँककर सुलाती

आंचल से ढँककर ही दुधवा पिलाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

आँचल से मुँह पोंछ काजल लगाती

कटोरे में दूध भात रखकर खिलाती

रोता तो थपकी  दे  हमको सुलाती

हमको तो ताज़ा वो खुद बासी खाती

कैसे कहूं अम्मा की याद नहीं आती ?

 

बाहर को निकलूँ तो दही गुड़ खिलाती

नज़र  न लगे  काला  टीका  लगाती

आंचल से  पैसा खोल हमको  थमाती

दुर्गा माई रक्षा  करें  कहके बुदबुदाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती

 

बेटा  तो   सोना  है   सबको   बताती

कोई  आता  हमरा ही गुणगान गाती

जाने कैसे बाबू  होंगे बड़ी याद आती

कहते कहते अम्मा की आँख भर आती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

 

शाम होते चौखट पे करती दिया बाती

बाहर  जो आती  तो  घूँघट में आती

सारे लोग खा लेते  बचा  खुचा खाती

रोज रात  बाबू जी  के पैर वो दबाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती

 

 

जाकर भी अम्मा कभी हैं नहीं जाती

थोड़ा थोड़ा अम्मा सभी में बस जाती

पहला शब्द जीवन का अम्मा सिखाती

अले लेले बाबू  सोना  कहके दुलराती

उनके ही रक्त से बनी है अपनी काठी

 

अम्मा राजा बाबू बेटा कहकर खिलाती

कैसे कहूं अम्मा  की  याद नहीं आती ?

 

  

      

   

 

 


मंगलवार, 18 नवंबर 2025

ज्यादातर की ज़िंदगी


 


पुस्तकों को करीने से सजा के जो रखता था

वही अब ज़िन्दगी में तिनकों जैसा बिखरा है

आपसी संबंधों को ज़मा करके जो रखता था

आज वही हर जगह से पूरा - पूरा उखड़ा है

 

जो अक्सर लोगों को, दिलों को जोड़ता था

उसी  का  दिल  आज  टुकड़ा – टुकड़ा है

जो बातों से उदास चेहरों पर लाता था मुस्कान

उसी  का  चेहरा  आज उतरा - उतरा है

 

जो सबको जोडकर महफ़िलें सजाता था

आज उसी  पर  सबसे  ज्यादा पहरा है

जिसे वह खुद से अधिक प्रेम करता था

उसने ही उसे दिया घाव सबसे गहरा है

 

जो दूसरों के लिए दौड़ता रहता था दिन रात

आज उसके दुःख में कोई नहीं ठहरा है

जो लोगों में भरता रहता था सतत उत्साह

आज उसका ही दिल दुःख से भरा कमरा है

 

ज्यादातर की ज़िन्दगी में ज़िन्दगी ऐसी ही है

आँखों में काजल  नहीं  बहता हुआ कजरा है  

 

पवन तिवारी

१८/११/२०२५

        


शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

स्वार्थ ने धृतराष्ट्र को अंधा किया



स्वार्थ ने धृतराष्ट्र को अंधा किया

नाम को इतिहास   में गंदा किया

स्वार्थ का वो क्रम है बढ़ता जा रहा

लोगों  ने  संबंध  को  धंधा किया

 

सब लगे हैं अपनी बंदर बाँट में

आ गये  संबंध  सो  सब हाट में

चाह डल्ल्फ़ बेड की है आराम की

कौन  सोयेगा   पुरानी  खाट में

 

मेज  कुर्सी  पर  पढ़े जो ठाट में

बाप  तो  उनके  पढ़े  थे टाट में

जीभें लपकें चाउमीनों की तरफ

है कहाँ वैसा  मजा  अब चाट में

 

पापा की अब डांट बंधती गाँठ में

क्या मज़े  थे  बाबू जी की डांट में

पुत्र कुछ ज्यादा ही पिसते जा रहे

भार्या और माँ  के  दुर्गम  पाट में  

 

काल  ने  भी  चाल  ऐसी  है चली

बंद  संबंधों  की  होती  हर  गली

पुष्प खिलने की प्रतीक्षा अब कहाँ

मसल देते लोग अब कच्ची कली

 

पवन तिवारी

७/११/२०२५   

 

     


शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

प्रेम की छाँव में राम की चाह में



प्रेम की छाँव में राम की चाह में

जानकी आ गयी गौरी की राह में


गौरी ने पाया जब जानकी को शरण

याद आया उन्हें अपना भी आचरण

प्रेम में शिव के कितनी वो व्याकुल रही

सिद्ध तप से किया प्रेम का व्याकरण


प्रेम उदात्त कितना है, की थाह में

सिय का उर जल रहा प्रेम के दाह में

सिय का अंतःकरण देख के गौरी का

निज का उर भी सिसकने लगा आह में


अपने दिन याद आये भरे नैन तब

वैसी स्थिति में ही सिय को देखा है अब

प्रेम की पीर जब प्रेम से मिल गयी

गौरी ने कह दिया इच्छा पूरी हो सब


सीता को क्षण उसी सब शगुन हो गये

शंख घंटे के स्वर मन्त्र से हो गये

नेत्र बायाँ निरंतर फड़कने लगा

क्षण उसी राम सीता के पिय हो गये


पवन तिवारी

२५/१०/२०२५  


बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

तू किसी और की हो गयी



तू किसी और की हो गयी

ज़िन्दगी यूँ लगी खो गयी

था लगा तेरे बिन कुछ नहीं

तू गयी ज़िन्दगी तो गयी

 

स्वप्न की रागिनी सो गयी

कीमती सबसे जो खो गयी

कुछ दिनों तक चला सिलसिला

वक्त की चाल सब धो गयी

 

कोई पूछे कहाँ को गयी

मैं भी कह दूं गयी तो गयी

अब पुरानी कहानी सी है

बात आयी गयी हो गयी

 

लगता है अच्छा अब जो गयी

प्रेम का रंग सब धो गयी

फिर से यात्रा सुघर है हुई

अब कहानी सही हो गयी

 

पवन तिवारी

१५/१०/२०२५


गुरुवार, 18 सितंबर 2025

ज़िन्दगी अब झर रही है



ज़िन्दगी अब झर रही है

चित्र धुँधले  दिख रहे हैं

और  कुछ  साथी हमारे

देख  हमको  हँस रहे हैं

 

जो भी साथी हँस रहे हैं

वो भी उतना झर गये हैं

कितने चश्में उनके बदले

याद कुछ ना रह गये हैं

 

ऐसी ही है सोच जग की

कहने  को  अपने पराएँ

दूसरों  पर  हँस  रहे जो

ढल  रहे उनके भी साए

 

खुद पे हँसने का न साहस

दूसरों पर  हँस  रहे  रहें हैं

छूटता   जा   रहा   जीवन

रोज़   थोड़ा   धँस  रहे  हैं  

 

दुःख में भी यदि हर्ष चाहो

हंसना खुद पे सीख लो तुम

दोष   औरों   में    देखो

दोष को ही  जीत लो तुम

 

पवन तिवारी

१८/०९/२०२५   


शनिवार, 30 अगस्त 2025

घबराने से विचलन होगी



घबराने से विचलन होगी

निज पथ से भी भटकन होगी

 

जिन दुःख ने हैं साहस तोड़े

आओ उनकी बाँह मरोड़ें

दुःख कितना भी दाब बनाये

धमकी का वह मज़ा चखाए

तुम केवल बस हँस भर देना

उतने से उसे सिरहन होगी

 

ऐसे वैसे लोग मिलेंगे

स्वारथ वाले रोग मिलेंगे

अपनी रीढ़ को सीधी रखना

झुककर मत स्वारथ को चखना

बस आनन कठोर कर लेना

इतने से उसे अड़चन होगी

 

कलियुग में हर जगह कालिमा

बचकर रहना तुम हो लालिमा

तुम्हें मिटाने जतन करेगी

जब तक तुम हो सदा डरेगी

बस तुम समुचित दूरी रखना

इतने से उसे तड़पन होगी

 

सारा जगत तुम्हें देखेगा

तुम्हरे साहस से सीखेगा

अक्षर-2 तुम सच रचना

नीचे निज हस्ताक्षर करना

काल भाल पर अंकित होगे

देख तुम्हें उसे ठिठुरन होगी

 

घबराने से विचलन होगी

निज पथ से भी भटकन होगी

 

पवन तिवारी

३०/०८/२०२५  


शनिवार, 23 अगस्त 2025

उर सरिता सा कल कल बहता



अपने हिय का हाल कहूँ क्या

जो अक्सर धक धक करता था

उस हिय का स्वर बदल गया है

उर सरिता सा कल कल बहता

प्रेम की भाषा सा कुछ कहता

उर सरिता सा कल कल बहता

 

यह परिवर्तन सहज नहीं है

जब से उन्हें घाट पर देखा

तब से यह मन बदल गया है

अब तो हँसकर सब है सहता

उर सरिता सा कल कल बहता

 

रुखा - सूखा सा जीवन था

अक्सर धूल उड़ा करती थी

जैसे सब कुछ बदल गया है

अब ठोकर भी हँसकर सहता  

उर सरिता सा कल कल बहता

 

लोग पूछते क्या खाते हो

चमक आ गयी है चेहरे पर

भाव ही सारा बदल गया है

कैसे कहूँ प्रेम में रहता

उर सरिता सा कल कल बहता

 

उनको कुछ भी पता नहीं है

इधर हर्ष का मौसम आया

कितना पावन प्रेम है होता

कैसे जीवन बदल गया है

सारा कलुष सतत है ढहता  

उर सरिता सा कल कल बहता

 

पवन तिवारी

२३/०८/२०२५   

 


बुधवार, 16 जुलाई 2025

सभी मेरे प्रश्नों के तुम ही थे हल



सभी  मेरे   प्रश्नों   के  तुम  ही  थे हल

तुममें ही अपना मुझे दिखता था कल

परिचित तो बहुत  एक अपने थे तुम

अपने ही  ने अपने से कर डाला छल

क्या  कहूँ सूख   गया जीवन का जल

 

एक ही क्षण में उसने बदला था दल

आघात के जैसा था एक - एक पल

छीना   भरोसे    ने   भरोसा    सारा   

गुम  हो  गया   जैसे   ही सारा  बल

क्या कहूँ सूख गया जीवन का जल

 

उसके ही सांचे   में  गया था मैं ढल

हिम होके उसकी ख़ातिर था गया मैं गल

फिर भी नहीं निभाया उसने था साथ

वैरी से मिलकर दिया था ऐसा फल

क्या कहूँ सूख गया जीवन का जल

 

मित्र  जिसे माना था निकला वो खल

आकाश  समझा  था  निकला सुतल

जीवन से शुभदा  का शब्द गया टल

मन कहता इस जग से चल जल्दी चल

क्या कहूँ सूख  गया  जीवन का जल

 

पवन तिवारी

१६/०७/२०२५