अम्मा
राजा बाबू बेटा कहकर खिलाती
कैसे कहूं अम्मा की याद नहीं आती ?
गर्मी
में आंचल का पंखा बनाती
जाड़े
में आंचल से
हमको छुपाती
छुटपन
में आंचल से ढँककर सुलाती
आंचल
से ढँककर ही दुधवा पिलाती
कैसे
कहूं अम्मा की याद नहीं आती ?
आँचल
से मुँह पोंछ काजल लगाती
कटोरे
में दूध भात रखकर खिलाती
रोता
तो थपकी दे हमको सुलाती
हमको
तो ताज़ा वो खुद बासी खाती
कैसे
कहूं अम्मा की याद नहीं आती ?
बाहर
को निकलूँ तो दही गुड़ खिलाती
नज़र
न लगे काला टीका लगाती
आंचल
से पैसा खोल हमको थमाती
दुर्गा
माई रक्षा करें कहके बुदबुदाती
कैसे
कहूं अम्मा की याद नहीं आती
बेटा
तो सोना है सबको बताती
कोई
आता हमरा ही गुणगान गाती
जाने
कैसे बाबू होंगे बड़ी याद आती
कहते
कहते अम्मा की आँख भर आती
कैसे
कहूं अम्मा की याद नहीं आती ?
शाम
होते चौखट पे करती दिया बाती
बाहर
जो आती तो घूँघट
में आती
सारे
लोग खा लेते बचा खुचा खाती
रोज
रात बाबू जी के पैर वो दबाती
कैसे
कहूं अम्मा की याद नहीं आती
जाकर
भी अम्मा कभी हैं नहीं जाती
थोड़ा
थोड़ा अम्मा सभी में बस जाती
पहला
शब्द जीवन का अम्मा सिखाती
अले
लेले बाबू सोना कहके दुलराती
उनके
ही रक्त से बनी है अपनी काठी
अम्मा
राजा बाबू बेटा कहकर खिलाती
कैसे
कहूं अम्मा की याद नहीं आती ?