सोमवार, 4 नवंबर 2024

जहाँ भी जिंदगी मिले उसे उठाते चलो



जहाँ  भी जिंदगी मिले उसे  उठाते चलो

स्नेहा उल्लास मिले लोगों में बढ़ाते चलो 

सुखों की आड़ में छुप के बहुत से दुख बैठे 

जो भी लालच के परिंदे मिले उड़ाते चलो 

जहां  भी जिंदगी  मिले  उसे उठाते चलो

 

लोग  आशा  का  पात्र लेके  रोज  घूम रहे 

किसी इक रोज ही  किसी की कहीं धूम रहे 

जिसे तुम अपना बड़प्पन समझ के फूल रहे 

वह तो बस स्वार्थ से है तुम्हरे चरण चूम रहे 

जिंदगी  की  मशाल को फक्त जलाते चलो 

जहाँ  भी  जिंदगी मिले  उसे  उठाते  चलो 

 

जिन्हें तुम  शत्रु समझते हो जिसे डरते हो 

जिनसे  बचने के कई ताम-झाम  करते हो 

उनसे बच जाओगे उनसे है नहीं डर उतना 

तुम्हें मारेंगे वहीं जिन पे दिल से मरते हो

जो भी लपटे हैं दुश्मनी की वो बुझाते चलो 

जहाँ  भी जिंदगी  मिले  उसे  उठने चलो

 

करते  कमजोर  सदा  तुमको तुम्हारे अपने 

जिन पर  विश्वास करते वो ही लूटते सपने 

जिनके उत्थान की खातिर किये बलिदान बहुत 

उनके  व्याख्यान  हैं अखबार  में लगे छपने 

लिए हो बोझ  जो  औरों का वो गिराते चलो 

जहाँ  भी  जिंदगी  मिले  उसे  उठाते  चलो 

 

पवन तिवारी 

04/11/2024


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