जहाँ भी जिंदगी मिले उसे उठाते चलो
स्नेहा उल्लास
मिले लोगों में बढ़ाते चलो
सुखों की आड़ में
छुप के बहुत से दुख बैठे
जो भी लालच के
परिंदे मिले उड़ाते चलो
जहां भी जिंदगी मिले उसे
उठाते चलो
लोग आशा का पात्र लेके रोज घूम
रहे
किसी इक रोज ही किसी की कहीं धूम रहे
जिसे तुम अपना
बड़प्पन समझ के फूल रहे
वह तो बस स्वार्थ
से है तुम्हरे चरण चूम रहे
जिंदगी की मशाल
को फक्त जलाते चलो
जहाँ भी जिंदगी मिले उसे उठाते
चलो
जिन्हें तुम शत्रु समझते हो जिसे डरते हो
जिनसे बचने के कई ताम-झाम करते हो
उनसे बच जाओगे
उनसे है नहीं डर उतना
तुम्हें मारेंगे
वहीं जिन पे दिल से मरते हो
जो भी लपटे हैं
दुश्मनी की वो बुझाते चलो
जहाँ भी जिंदगी मिले उसे उठने चलो
करते कमजोर सदा तुमको तुम्हारे अपने
जिन पर विश्वास करते वो ही लूटते सपने
जिनके उत्थान की खातिर
किये बलिदान बहुत
उनके व्याख्यान हैं अखबार में लगे छपने
लिए हो बोझ जो औरों
का वो गिराते चलो
जहाँ भी जिंदगी मिले उसे उठाते
चलो
पवन तिवारी
04/11/2024
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