शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

प्रारब्ध


 

बचपन में  जो  पूर्व जन्म की कथा बताते थे

पूर्व जन्म  के  कर्मों  का  परिणाम बताते थे

जो विपत्ति दुःख, छल जितना भी झेल रहे थे वो

प्रारब्धों  का  किया धरा सब काम बताते थे

 

सुनते रहते थे हम अक्सर  समझ  नहीं पाते थे

जिज्ञासा  होती  थी  लेकिन प्रश्न न कर पाते थे

उनकी बातें सुनते, उनका  मुँह  देखा करते थे  

अपनी व्यथा कथा कहकर वह दुःख में सुख पाते थे

 

जब अपने संग हुए  छलों का उत्तर ना पाते थे

कष्ट की अवली लगी सदा वे दुःख पे दुःख पाते थे

आकुल मन जब गला दबाता छाती जलने लगती

एक  सहारा  केवल  तब  प्रारब्धों  पर  पाते थे

 

 आज समय के उसी काल में जब हम उलझे हैं

सुलझे - सुलझे  लगे  प्रश्न  पर  बहुधा  उलझे  हैं

तब जाकर प्रारब्ध शास्त्र का महत समझ आया

हम भी उसकी शरण गये अब जब जब उलझे हैं

 

विफलताओं   में  जीने  का  आधार  यही देता

दुःख को  सहने का  शसक्त आधार यही देता

पिछले जन्मों के हिसाब कुछ बाक़ी रह गये थे

यूँ   बहलाकर  जीने  का   आधार   यही   देता

 

पवन तिवारी

०६/११/२०२४    


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें