बुधवार, 1 मई 2024

नये - नये दो आकर्षण में



नये - नये दो  आकर्षण में

भावनाओं के अति घर्षण में

सब की  सब  मर्यादा टूटी

सारी   सामाजिकता   रूठी

 

अवसरवादी  भावनाओं  ने

उच्छश्रृंखल  कामनाओं  ने

कोमलता को ठोकर  मारी

जीती   बाज़ी  जैसे  हारी

 

धूर्त तत्त्व जो  आसपास के

लगे जुटाने  तत्त्व नाश के

इक चिंगारी काम कर गयी

जीने वाली  चाह  मर गयी

 

ऐसे  ध्वंस  बहुत  होते हैं

बिन  अनुभव  वाले रोते हैं

दुःख के  बोझे  भी ढोते है

जीवन को प्रतिदिन खोते हैं

 

धीरज बुद्धि साथ में रखना

फिर चाहे जैसे  फल चखना

जो भी  होगा  तर  आओगे

हँसते - हँसते  कर  पाओगे

 

पवन तिवारी

०१ / ०५/ २०२४          

 

   

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