रविवार, 28 अप्रैल 2024

ध्वंस हुए हैं मानवता



ध्वंस  हुए हैं मानवता  के मानक सारे

अब के सम्बन्धों में ज्यादा कंस हुए हैं

बातों का है मूल्य जुगाली जितना केवल

नैतिकता के  पहलू  तो निरवंश हुए हैं

वे केवल  कहने  भर को बस मानव हैं

निकट से देखो सब दानव के अंश हुए हैं

 

जो निकृष्टता के मानक पर ऊँचे हैं

राजनीति के वे सशक्त स्तंभ हुए हैं

जो थोड़े में भी, थोड़े से   नैतिक थे

उनके थोड़े बचे मोह भी भंग हुए हैं

जो हैं लालच, झूठ, कपट से भरे हुए

राजनीति के सबसे भारी अंग हुए हैं

 

जल जंगल से साथ हवा भी बिगड़ी है

इनसे जाने  कितने  दुर्व्यवहार हुए हैं

ये  मत  पूछो  मर्यादा  कितनी टूटी

उससे ये सब जाने कब के पार हुए हैं

जिन पर  रहा  भरोसा  वे पहले लूटे

कैसे  कहूँ  कि  ऐसे  पहरेदार हुए हैं   


पवन तिवारी

२८ /०४/ २०२४

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