गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

आयु कोमल तेज भारी




आयु  कोमल  तेज भारी

खड्ग जैसी है  दो  धारी

व्याधि  के  हैं  वज्र बरसे

नीच   ग्रह  दे  रहे  गारी

 

पाप   हैं   प्रारब्ध   के सब

ले  रहे   प्रतिशोध  हैं अब

ऋण पुराना किंतु ऋण है

गणित इसका छोड़ता कब

 

छिटकते   संबंध  हैं  सब

टूटते    अनुबंध   हैं  सब

रक्त भी विघटित दिशा में

छिन्न लज्जित बंध हैं सब

 

वेदना   में   हँस   रहा  हूँ

स्वयं को  ही  डँस रहा हूँ

अग्रसर हूँ मुक्ति पथ  पर

लोग  समझे  फँस रहा हूँ

 

धर्म  के पथ  चल रहा हूँ

पांडवों  सा  गल  रहा हूँ

मैं  सनातन का हूँ मानक

धर्म   जैसा   पल  रहा हूँ

 

पवन तिवारी

२५/०४/२०२४    

 

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