मंगलवार, 10 जनवरी 2023

ये कहानी दूर तक जानी



ये  कहानी दूर तक जानी

बात  तूने  ना   मेरी मानी

बात सबके होठों पे छायी

तूने अपने  मन की ठानी

 

जो  छुपाते  फ़ैल  जाती  है

होंठ चुप तो आँख गाती है

साफ़ कितना हो गला लेकिन

हिचकी तो दिन रात आती है

 

हों,   अकेले    मुस्कुराते  हैं

राह   चलते   गुनगुनाते   हैं

ये  सभी लक्षण उसी  के हैं

दिन में भी जो खाब आते हैं

 

तेरा  भी  अब हाल ऐसा है

मजनूँ  या  दीवाने जैसा है

जीने मरने से परे अब हो गया

पूछना   बेकार   कैसा  है

 

पवन तिवारी

०६/०१/२०२३


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