शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

प्रेम अनुरक्ति या



प्रेम अनुरक्ति  या  कि  समर्पण कहूँ

मेरा सब कुछ या स्व को ही अर्पण हूँ

मुझमें जो भी है अच्छा मिला आप से

आप का प्रेम  या सत का दर्पण कहूँ

 

आप के आचरण  का करूँ अनुगमन

शोक से त्रास तक होये सबका शमन

द्वार से गृह मेरा तन मेरा मन मेरा

कर ही देगा विमल आप का आगमन

 

अपना  संबंध  परिभाषा  से है परे

किन्तु जो भी कहें सब खरे के खरे

जान लो तो सुखद अन्यथा मान लो

कुछ नहीं समझे  तो कृष्ण राधे हरे

 

इसके आगे कथन  कथ्य कोई नहीं

रात्रि भी यह कथा सुन के सोई नहीं

यह न लौकिक अलौकिक की परिभाषा में

काल  हँसता  रहा  आँख रोई नहीं  

 

पवन तिवारी

१२/०१/२०२३

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