मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

पुष्कर सा उर है खिल जाता



पुष्कर सा उर है खिल जाता

जब तेरा  दर्शन मिल जाता

 ओझल दृग से जब होता है

अंतरतम तब है हिल जाता

 

प्रत्यय  एक  तुम्हें  लेकर है

देख तुम्हें दिन बन जाता है

पग मेरी साकल खड्काता

देख   तुम्हें   ये  हर्षाता  है

 

अनुरक्ति  है  या  भक्ति है

या कोई अप्रतिम शक्ति है

सच्चे प्रेम में जो रम जाये

फिर सामान्य कहाँ व्यक्ति है

 

वैसा कुछ तुममें लगता है

कोई दीप तुममें जगता है

पथ स्पष्ट दिखाई देता है

मध्यम राग तत्त्व पगता है

 

 अब तुम्हर निदेश पर जीना

चाहे  पड़े   हलाहल  पीना

मुक्ति प्रेम में बस तुम्हरे हैं

लाग लपेट न झूठ है सीना

 

पवन तिवारी

०१/०९/२०२२  

   

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