शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

बिन पढ़े ज़िन्दगी के पन्ने


बिन  पढ़े  ज़िन्दगी  के  पन्ने

पुस्तक की  समीक्षा करते हैं

कुछ  अपने ही  ऐसे  अक्सर

सब  बोझ तुम्हीं  पे धरते हैं

 

कुछ  ऐसे  भी  स्वनाम  धन्य

बिन  पढ़े  भूमिका  लिखते हैं

कुछ लोग सभा में अनिमंत्रित

सर्वाधिक  सज-धज दिखते हैं

 

अब  ऐसा  बुरा  समय  का है

कुछ लोग समय को धकियाते

अक्सर  विलम्ब  से  जाते  हैं

सब  धंसकर  उनसे  बतियाते

 

उनकी  हाँ  पर  सबकी नज़रें

उनकी  कुछ   ऐसी  धूम  रहे

वे  जहाँ  भी  आते - जाते  हैं

सब  आगे  पीछे  घूम  रहे हैं

 

जो  समय के हैं पाबन्द बड़े

वे जग  में  खड़े  अकेले  हैं

जो आवारों  सा  घूम  रहे

उनके  संग   रेले  मेले  हैं

 

पवन तिवारी

०९/०४/२०२२

 

 

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