बुधवार, 13 जुलाई 2022

धुंधला - धुंधला थोड़ा

धुंधला - धुंधला  थोड़ा  मेरा  आज है

फेफड़ों   पर  क़फ़   का   गुंडाराज  है

कुछ  खराशों   ने  पकड़  रखा   गला

बिखरा - बिखरा धड़कनों का काज है

 

साँस  नथुनों  से  झगड़  कर  आ रही

कान  थोड़ा  भ्रमित  या कि जपाट है

रोग  जीवन  छीन  पाया  जब  नहीं

क्रोध  में  कर  दी  खड़ी मेरी  खाट है

 

इस  तरह  दुःख  को  हरा देता रहा

अपनों  से  बस  हार जाता ही रहा

लोग  भी  अपनों  से  हारे  हैं सुनो

इनसे ही  जग  मात खाता ही रहा

 

मोह  छोड़ो  यदि विजेता बनना है

कर्म  से  सम्बंध   केवल  रखना  है

भाव हो पर भावना पर रखो अंकुश

तेज  लेकिन  सजगता  से चलना है

 

पवन तिवारी

२२/१२/२०२१   

 

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