बुधवार, 13 जुलाई 2022

शाम सा लग रहा था

शाम सा लग रहा था मुझे

जैसे  आभा  मेरी खो गयी

आई जीवन में तुम जो मेरे

भोर  सी  जिंदगी हो गयी

 

प्रेम के नाम पर  पहले भी

मुझको पूरा था लूटा गया

प्रेम सच्चा  तुम्हारा  मिला

मेरी यादों  से  झूठा  गया

 

आये  थे   कुछ  उदासी  भरे

दौर   मुझको   सताते   हुए

है कहानी खतम तुम्हरी अब

हँस   रहे   थे   बताते   हुए

 

उनके हर  कथ्य  को  प्रेम के

अस्त्र  से  तुमने  झूठा किया

हर्ष  देखा  तुम्हें  साथ   जो

लौट  आया  जो रूठा किया

 

 प्रेम   ने   सिद्ध   फिर  से  किया

दुःख का ग्रह उससे टल सकता है

प्रेम     रूठे     किसी   का   नहीं

सर्वाधिक उर को  खल  सकता है

 

पवन तिवारी

२०/१२/२०२१

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