शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

प्रेम का जो पुस्तकालय


प्रेम का  जो  पुस्तकालय  था  पुराना

उस विषय सूची से बाहर हो गया हूँ

बारिशों  को आने दो सब ज्ञात होगा

उगेगा  अनुराग  सा  जो  बो गया हूँ

 

भीड़ की दुनिया में मुझको अब न खोजो

मैं  कहाँ बाहर हूँ निज में खो गया हूँ

है   रहा  संवाद  में   विश्वास   मेरा

इन विवादों पे मैं  समझो सो गया हूँ

 

ऐसे    ऐसे  मौसमों  से  गुज़रा  हूँ

हँसते-हँसते औ अचानक रो गया हूँ

वृहद् उस दुःख काल का यूँ नाम ना लो

त्रास  के उन आँसुओं को धो गया हूँ

 

ये मेरी  कटि   जो  झुकी सी देखते हो

अपनी क्षमता से अधिक मैं ढो गया हूँ

यूँ  नहीं  जाता  किसी के द्वार लेकिन

आर्द्र  स्वर  ने  है  पुकारा  तो गया हूँ

 

पवन तिवारी

१४/०४/२०२२  

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