मंगलवार, 17 मई 2022

कुछ तो भीगा भीगा सा है

कुछ तो भीगा भीगा सा है

और  बहुत  कुछ  भीगा है

अंदर  धधक  अनेकों  के हैं

पर   बाहर   से  भीगा  है

 

कितने  अंदर  बाहर  सूखे

पर  तन  पूरा   भीगा   है

बारिश  भिगो  रही है तन को 

रोम  रोम  तक  भीगा  है

 

पलकों का उपवन भीगा है

और   ये  जीवन  सूखा  है

रिमझिम रिमझिम हो रही बारिश

दादुर   पूरा     भीगा   है    

 

वो भी  सूखा   सूखा  सा है

जो   वर्षों   तक   भीगा  है

यही भाव दुःख देता रहता

जो  इनके   संग   भीगा  है

 

पवन तिवारी

२९/०५/२०२१  

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