मंगलवार, 17 मई 2022

कितने रिश्तों को इस अर्थ ने खाया है

कितने रिश्तों को इस  अर्थ ने खाया है

राग  मैं  मैं  का  इसने  बहुत गाया है

अर्थ  का  मद  लिए  घूमता  रहता है

किन्तु सम्मान हिय  का  नहीं पाया है

 

इसकी  माया  का जग में नहीं पार है

एक  क्षण  में  बदल  देता व्यवहार है

 जब  जिसे  चाहे  जैसे  नचा देता  है

इसके हाथों में भी  प्यार  तकरार  है

 

ये  रुलाता  भी  है और  हँसा देता है

नैतिकों को भी  अक्सर फँसा देता है

राहु  केतु  शनि  से  भी  भारी  है ये

पाप  के  दलदलों  में  धँसा  देता  है

 

पाप  भी  पुण्य  भी मान भी करता है

पाप  बढ़  जाये  तो दान भी करता है

राजसी  गुण  बड़प्पन  दिखाता तो है

किन्तु अपनों का अपमान भी करता है

 

पवन तिवारी

२५/०५/२०२१

 

 

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