सोमवार, 4 अप्रैल 2022

साहित्यिक भवन

कुछ दिनों पहले

एक दूसरे नगर

प्रवास पर था

एक दिन  सुबह

टहलते हुए एक पुराने

भव्य भवन पर

दृष्टि पड़ी तो

हुआ आश्चर्य,

दीवार पर उभर रहे थे ते

जी से क्रमानुसार शब्द !

ध्यान से देखा

ज्ञात हुआ वे शब्द

एक कहानी कहने लगे थे।

मैं उत्सुकतावश भवन की

दूसरी दीवार की ओर गया।

वहां भी उभरने लगे

सुंदर शब्द,

पढ़ने का प्रयास किया तो

आने लगी कविता की गन्ध ।

अब मैं,

तीसरी दीवार की तरफ गया

वहां और सुंदर,

 गढ़े गढ़े से शब्द उभर आये।

पढ़ा तो वे गीत थे,

मेरी उत्सुकता बढ़ी ।

भवन के द्वार पर

आकर खड़ा हो गया तो

उभर आई मेरी ही तस्वीर

मैं हतप्रभ!

मैं लगभग भागा था

कुछ दूर आकर

एक व्यक्ति से पूछा- उ

सने बताया

वर्षों पहले इसमें

एक साहित्यकार रहता था

इस घर को

कहानियों, शब्दों, कविताओं,

गीतों की आदत हो गई है!

नशा भी कह सकते हैं

निश्चित ही आप साहित्यकार होंगे!  

आपको बुला रहा है क्योंकि

यह दूर से

साहित्यकार को पहचान लेता है।

 

 

पवन तिवारी

२५/०३/२०२१

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