सोमवार, 4 अप्रैल 2022

सुंदर मनुज

 

जिस पर बीत रही हो जाने

बाकी तो केवल बस माने

दुख स्थाई साथी फिर भी 

व्याकुल हैं सब सुख को पाने

 

 

ढंग ढंग के दुख बीते हैं

रोज रोज मर कर जीते हैं

वैसे तो इंकार ही करते

मुफ्त की तो सब ही पीते हैं

 

 

इंद्रधनुष से अधिक रंगीले

मानुष सबसे अधिक सजीले

जो कठोर हिय के लगते हैं

अंदर से हैं गीले - गीले

 

 

कितनी कला मनुज के अंदर

लगता सच वंशज हैं बंदर

तिकड़म उछल कूद में आगे

फिर भी मनुज सभी से सुंदर

 

 

पवन तिवारी

२५/०३२०२१

 

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