सोमवार, 4 अप्रैल 2022

प्रेम और स्वार्थ

प्रेम में जब समर्पित कोई होता है

सच कहूँ अपना विश्वास वह वो बोता है

अपना ही प्रेम जड़ काटने जब लगे

ऐसे में उर सहित रोम भी रोता है

 

 

प्रेम होना भी जीवन में इक पर्व है

कुछ के जीवन में बस प्रेम ही सर्व है

प्रेम के नाम पर कुछ बहुत मिलता है

प्रेम सच्चा मिले यह भी इक गर्व है

 

 

प्रेम का बिछड़ना इक दुखद बात है

प्रेम  में झूठ स्व से बड़ा घात है

प्रेम में छल से सबको बचाएं प्रभु

ऐसे प्रेमी की तो जिंदगी रात है

 

 

आज के दौर में प्रेम भी स्वार्थ है

अपना हित ही बड़ा सबसे परमार्थ है

प्रेम में मिलनी दुर्लभ सुभद्रा यहां

अब ना मोहन कोई ना कोई पार्थ है।

 

 

 

पवन तिवारी

 १७/०२/२०२१

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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