शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

रोना

रोना सबसे पवित्र कला है

रोना शहनाई जैसा है

जिसमें अनेक स्वर हैं

सुख में रोना

प्रेम में रोना

करुणा में रोना

स्मृति में रोना

भय में तथा

क्रोध में रोना

और आत्मीयता में

और रोना किसी के सम्मान में

किसी के कंधे पर टिकाकर

किसी के गले या

भुजा में समर्पित होकर रोना

मनुष्यता और प्रकृति की

संवेदनात्मकता की अप्रतिम

आभामयी रचना है

रोने का सम्मान करना सदा !

०९/०८/२०२१

 

 

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