गीत
गम  को  उतार देता है 
पवन
को सुन निखार देता है 
रोग
 संगत  के कई लगते हैं 
प्यार
का  वो बुखार देता है 
द्वार
पर जब भी गीत आते हैं 
किवाड़
तक भी गुनगुनाते हैं 
पवन
को देख गीत हँस पड़ते
मिले
तो साथ मिल के गाते हैं 
गीत
और वो भी दोनों जज़्बाती
लगता
सदियों से दोनों हैं साथी 
उसका
हर भाव जैसे फूल खिले 
उसके
शब्दों से भी ख़ुशबू आती 
वो तो  हिंदी  के  फूल बोता है 
वो  तो गीतों को लेके सोता है 
कहानी
कविता से मैत्री उसकी
इनके
बिन होता है तो रोता है 
इक   जमाना   उसे   भुलाता  है 
इक  जमाना  जो  उसे   गाता है
हो
कुछ भी जिक्र उसका आता ही 
कितने
दिल में वो घर बनाता है 
पवन
तिवारी 
 
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