गेहूँ
की पाती पर  चढ़ के ठुमकती है ओस देखो 
और
सर्दी की तपन से मुँह से निकले भाप देखो 
बाँस
गीला सा लगे है भीगी-भीगी दूब देखो 
लकड़ियों
में है उदासी ठिठुरी ठिठुरी धूप देखो 
शीत
में पानी गरम है जल से उठती भाप देखो 
आग
चूल्हे की न सुनती  धुंएँ का  परताप देखो
हर
तरफ रानी  रजाई  चद्दरों  का  भाव
देखो 
छोटी
टोपी भी गरम है  स्वेटरों का ताव देखो  
मारे
- मारे सूर्य फिरते कुहरों का है राज देखो 
हर
घड़ी संध्या सी लागे  पूस का अंदाज देखो 
कोई
सुनवाई नहीं है सर्दी का बस रूप देखो 
इसका
भी स्वागत करो ना जाड़ा ऋतु का भूप देखो
पवन
तिवारी 
२१/१२/२०२०  
 
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