सोमवार, 24 जनवरी 2022

पागल हँसते हैं

पागल हँसते हैं

चतुर भी फंसते हैं

सूरज ढलते रोज देखते

पर्वत भी धँसते हैं

 

झूठ के पर होते हैं

सच के घर होते हैं

धर्म पथ लम्बा पर

अंत सर्ग के दर होते हैं

 

अच्छे का स्वागत होता है

काम सदा आगत होता है

शिष्ट गुणी से बेहतर रहता

धूर्त का बुरा गत है होता

 

पवन तिवारी

समवाद- ७७१८०८०९७८

१८/११/२०२०

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