सोमवार, 24 जनवरी 2022

प्रेम पहले बहुत वे जताते रहे

प्रेम  पहले  बहुत  वे  जताते   रहे

हम थे  अनभिज्ञ  वे ही बताते रहे

प्रेम का द्वार हमने भी खोला तो वे

ये किया क्या वे कहकर सताते रहे

 

प्यार की  कल्पना में  चुभा  दी हुई

हँसने वाला था लेकिन हँसी ना हुई

एक छल से स्वपन सब कलंकित हुए

प्रेम की  राह  फिर प्रेम  की ना हुई

 

वादा करके भी इक बार आये नहीं

थे बुला सकते लेकिन बुलाये नहीं

हमने भी चाह के पग बढ़ा फिर दिए

हम गये द्वार पर भी, वो आये नहीं

 

हम जलाते रहे  प्रेम के  दीप को

वो  गये  पूजने  रूप के रूप को

देवताओं के दर प्रार्थना मैंने की

वे निहारा किये अर्थ के कूप को

 

 मेरी प्रति प्रार्थना  लौट आने लगी

वो कहीं और ख़ुद को झुकाने  लगी

देवता शर्म से चुप  सभी  हो  गये

बातें उनकी  हवा  बुदबुदाने  लगी

 

ऐसे में प्रीति  को  गीत में लाया मैं

पीड़ा को शब्द में लाके बहलाया मैं

और  जग सोचता  ख़ूब गाता हूँ मैं

इस तरह कविता में खुद को ले आया मैं

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८  

१९/११/२०२०  

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें