पीर  हद 
से  बढ़ी  तो 
ये  हुआ
दर्द के स्वर
गीत  में 
आने  लगे
कुछ दिनों तक प्रेम
का सम्बंध था
कुछ दिनों तक बाद
में अनुबंध था
प्रेम का  भी 
साथ  थोड़ा सा रहा
कहने को खुशियों का
जोड़ा सा रहा
प्रेम के काँटे  जो 
उग  आने लगे
दर्द के स्वर  गीत में 
आने  लगे 
साथ  होकर 
भी कहीं  वो और थे
प्यार था जब वो अलग
ही  दौर था
घूमते  थे 
हाथ   डाले   हाथ 
में
अब तो चलने को हैं
चलते साथ में 
बेवफाई   सामने   
थी   देखकर
दर्द के स्वर  गीत 
में  आने लगे 
निभ गया कैसे ये याद
आता नहीं
साथ भी तो  अब चला जाता नहीं
वो छुड़ाकर हाथ  आगे 
बढ़  गये
सामने मंजिल नयी  थी  चढ़ गये
कहना चाहूँ  पर 
नहीं  कहते बने
दर्द के स्वर  गीत 
में  आने लगे 
प्रेम  के 
वादे  भी  रोके रह गये
आँखों आँखों में ही
धोखे सह गये
सारी खुशियों दर्द
बन बहने  लगी
प्रेम  की 
अट्टालिका  ढहने  लगी 
वेदना  की 
पोटली   कंधे 
लिए
दर्द के स्वर
गीत  में  आने लगे
पवन तिवारी 
संवाद – ७७१८०८०९७८   
 
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