मंगलवार, 5 मई 2020

पैरों की आभा




इन कच्ची मेड़ों पर चलना,
इन दूबों पर लेटना ;
इन ढेलों से खाना ठोकर
इन काँटों का पैरों में चुभना
इन पगडंडियों पर चलते हुए
पैरों में शीत लगना,
कभी तपती धूप में जलना,
पड़ जाना तलवों में छाले !
जाड़ों में फटना बिवाइयाँ,
द्वार पर बारिश में पांवों का फिसलना
और मिटटी से होना लथपथ !
टीले पर चढ़ते हुए
पैरों का होना घायल,
ये सब कृपा थी मेरी माटी की !
तभी इस अंतिम दौर में भी
दौड़ रहा हूँ लगातार !
इन्हीं से मेरे पैरों की आभा है !  


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें