बुधवार, 6 मई 2020

धीरे - धीरे




वह सुनता है मीठा और धीमा संगीत
जैसे धीरे-धीरे ह्रदय में उतरता है प्रेम
जैसे पहाड़ों से मैदानी क्षेत्रों में
बहती है आराम से नदी
वह होता है, साँसों से बजने वाली
बांसुरी की तरह सुरीला.
वह हमेशा मिलता है धीमे-धीमे
फिर चाहे खुशियाँ हों या प्रकृति
वह कभी जल्दी में नहीं रहता,
वह निहारता भी है तो आराम से,
वह पढ़ता भी है तो आराम से धीरे-धीरे
रचता भी है तो धीरे-धीरे,
वह धीरे-धीरे उतरता है शब्दों के हृदय में
जैसी न कोई सोते हुए जल में
उतरता है चुपचाप !
वह दुखों से मिलता है आहिस्ता-आहिस्ता
और उतरता है उसी गति से उनके संसार में
वह प्रेम भी करता है दबे पाँव और
प्रवेश करता है उसके देह से
होते हुए उसके आत्मा के मन्दिर तक
वह मुट्ठियाँ भी धीरे-धीरे ही भींचता है और
खोलता भी है धीरे-धीरे,
इसी से एक वर्ग हमेशा
उसे देखता है सशंकित दृष्टि से
वह चुपचाप प्रश्न करता रहता है कि
यह मुट्ठियाँ क्यों भींचता है ?
और खोलता भी धीरे-धीरे क्यों है ?
उसे उसका धीमा संगीत सुनना
लिखना, पढ़ना और प्रेम करना नहीं अखरता
बस ! मुट्ठियाँ भींचना अखरता है.
और एक वो है जो इस अखरन को
समझते हुए भी अपनी मस्ती में
सबसे बेपरवाह वो सब करता है जो
उसे करने का मन करता है
वह भी अपनी शर्तों पर
बन्धनों को आराम से धकियाते हुए
आहिस्ता आहिस्ता
अपनी स्वतंत्रता का झोला
लटकाए चलता रहता है.
क्या इसीलिये वो लेखक कहलाता है ?



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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