शनिवार, 2 मई 2020

उम्मीदों का कवि


कल मेरे मित्र का फोन  आया
उसने लगभग सुबकते हुए कहा
तुम तो कवि हो !
हमेशा उम्मीदों और
प्यार की बात लिखते हो !
पता है इस विकट समय में
मेरी प्रेमिका ने मुझे धोखा दे दिया
वह मेरे ही एक परिचित पास चली गयी.
क्योंकि अब मेरे पास पैसे नहीं हैं.
मैं अकेले टूट रहा हूँ !
क्या तुम कोई उम्मीद के शब्द दे सकते हो !
मेरी आँखें भी डबडबाने को आ गईं.
क्योंकि मेरे पास भी पैसे नहीं थे.
और मेरी कविताओं को
सुनने वाली भी चली गयी थी.
पर अब वह मेरे साथ था.
अब न मैं अकेला था, न वो अकेला ;
दोनों टूटे जुड़ गये तो
उम्मीद के स्वर फूट पड़े.
मैंने कहा – तुम्हें वफा मिली ?
तुम्हें प्रेमिका मिली ?
नहीं ठहरी, चली गयी.
तो ये धोखा भी चला जायेगा.
फिर वफ़ा आयेगी, पैसा भी तो लौटता है.
पतझड़ की तरह बहार भी आती रहती है.
अबकी बार कोई ऐसी आयेगी,
जो तुमसे यूं ही मिलेगी !
उसे तुमसे प्यार होगा,
तुम्हारे लिए ही जियेगी और
तुम्हें इतना चाहेगी कि तुम
सब धोखे भूल जाओगे और
तुम्हारे लिए ही मर जायेगी.
तुम्हारे बीच तब कोई न आ सकेगा और
तुम मुझे भी भूल जाओगे और
मेरा दोस्त रोते-रोते हँस पड़ा और बोला-
तुम सचमुच उम्मीद के कवि हो !
और मैं खाली जेब में हाथ डालकर
मुस्कराते हुए बोला- अभी भी,
मेरे पास श्रोता है, तो प्रेम होगा ही !



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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