रविवार, 3 मई 2020

कुछ जीते हैं दुविधा में


कुछ जीते हैं दुविधा में
कुछ जीते हैं सुविधा में
हम शब्दों के सहचर हैं
हम जीते हैं अविधा में

कुछ जीते  सम्बंधों में
कुछ जीते अनुबंधों  में
हम गीतों के साधक हैं
जीते  हैं  तटबंधों  में

कुछ जीते हैं अपनों में
कुछ जीते हैं सपनों में
हम तो अक्षर के अनुगामी 
जीते शब्दों के मपनों में

कुछ जीते हैं  अहंकार में
कुछ जीते हैं अलंकार में
वागेश्वरी के अनुचर हैं हम
जीते  उनकी  टंकार में 


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


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