शुक्रवार, 1 मई 2020

काले अक्षर,कविता और कवि


जब छोटा था, काले अक्षर अच्छे लगते थे !
किताबों में, श्यामपट पर, हमारी पाटियों पर,
काले अक्षरों से रोज–रोज मिलकर मोह हो गया.
अब और भी अच्छे लगते हैं काले अक्षर
श्यामपट और किताबों से उन्हें लेकर आया
अपनी उंगली की सहायता से गली की
धुल भरी माटी में, वहाँ से पलिहर खेत में
और चाक के सहारे अपने घर की दीवारों पर
और फिर बुला लाया अपनी हथेली पर
अपना नाम लिखने के बहाने  

इस तरह ले आया उन्हें अपने पास,
उनसे बतियाता और उनको बताता,
अपने बारे में-
जिन्हें जानता गया,
उनसे भी मिलवाता गया !
दूध, बछड़ा, मिठाई, घास
पत्ते, पेड़, बाग़, फूल, तितली, सरसों, बाऊ
अम्मा, कुर्ता, अंगोछा, काजल, लेमनचूस, तुलसीमाई
चाट, चोखा, भात, भगवान,घंटी नीम आदि से.
जो देखता वह हँसकर कहता- इसकी तरह
इसकी कवितायेँ भी मासूम हैं.

थोड़ी उमर बढ़ी तो दुनिया के साथ,
मैं भी शब्दों का तिकड़म करने लगा.
लोग देखते तो कहते-
अच्छी तुकबन्दी करने लगे हो !
मेरा परिचय इधर के सालों में बढ़ा था.
अब मैं मेला, बाज़ार, गुब्बारा, मूँगफली
गंगा जी, दीवाली, बाज़ार, साईकिल, समोसा
जूता, चश्मा, हिंदी, इतिहास, भूगोल, गणित, गेहूँ
गाय, बैल, रेडियों, टेलीविजन, गाना, गुल्ली डंडा, पड़ोसी, रिश्तेदार
मौसी, मामा, बुआ, और मित्र आदि को
शब्दों में लाने लगा था.
लोग देखते तो कहते- अब तुम्हें कुछ और लिखना चाहिए.

कुछ साल और बीते !
अब मैं लड़कियाँ, चाँद – चाँदनी, सूर्य, तारे, मौसम, सावन
प्रेम, आकर्षण, जवानी, मोटर साईकल,गोलगप्पे, जिलेबी, चाय
ओढ़नी, सिंचाई, खेत, मेड़, खाद, क्यारी, नहर, जिम्मेदारी,
बिजली, भाई-बहन, पैसा शौक, जरूरत, अपना-पराया, खलिहान,
कटाई, बुवाई, फावड़ा, हल, हँसिया, हरियाली, सूखा आदि
शब्दों के साथ चलने लगा था.
अब लोग कहने लगे थे – रास्ते पर आ रहे हो !

और फिर कुछ ही साल बाद मैं, सौन्दर्य, सिनेमा, मुस्कान, हँसी,
आकर्षण, मिलाप, नयन, अल्हड़, लोच, हिरनी, उड़ान, गुलाब
अधर, यौवन, बहकना, प्रेमिका, केश, घूमना, मटरगस्ती, आवारा
दुल्हन,बरात, बिदाई, सुहाग, गहना, समर्पण आदि शब्दों से
अक्सर भेंट करने लगा था.
लोग कहते अरे तुम तो ग़ज़ल जैसा लिखने लगे हो,
कोई कोई जानकार कहते अच्छा ख़याल लिखते हो,
कोई – कोई मुक्तक बताते, कहते जवानी में
यही सब लिखाता है.

फिर जल्दी ही कुछ अलग लोगों से भेंट हुई
घर-परिवार, जीवन-यापन, नौकरी, रोजगार, व्यवस्था, संचय
समाज, मान-अपमान, आशा-निराशा,कर्तव्य बोध, अधिकार
असफलता, संघर्ष, अवरोध, पत्नी, बच्चे, शिक्षा, अवसाद, भ्रम
प्रतिस्पर्धा, क्रोध, जलन, डर, साहस, दुत्कार, छल- कपट
आरोप, उलाहना, जीत- हार, स्वाभिमान, दिखावा, अन्धकार आदि से
अब लोग देखते तो खाते अच्छी कविता लिखते हो
समय के साथ उम्र बीतती गयी.

इस बीच कुछ ख़ास लोग मिले दुःख, संत्रास, गरीबी, घाव, राजनीति
गुट, क्षोभ, आडम्बर, मिथ्या, मिथक, धन,मोह, आभा, प्रतिष्ठा
सम्मान, विश्वासघात, हत्या, चोर, नैतिक, असभ्य, लूट, भ्रष्टाचार
बेबसी, भूख, धर्म, श्रद्धा, भक्ति, व्यवसाय, एकाकीपन, निंदा, आलोचना
टिप्पणी, समीक्षा, प्रशंसा, चाटुकारिता, वाद, परिवाद  स्वहित
और आखिर में मिला जनहित मैले कुचैले बदबूदार
फटे चीथड़ों में सहमा सा जनहित और फिर मैं दुखी
होकर इधर शब्दों से मिलना कम कर दिया.

अब लोग देखते हैं तो कहते हैं – अच्छी कविता लिखते हैं आप.
आप की कविताओं में जीवन की सूक्ष्म संवेदनाओं के अंकुर
सहज ही फूटते हैं. विपरीत परिस्थितियों में में भी
पीड़ा से सघन संवाद करती हैं आप की रचनायें
आप सचमुच महान कवि हैं.
जीवन के आख़िरी दौर में पहुँच कर

अब सोचता हूँ कवि और कविता तक पहुँचने में छल, कपट
पीड़ा, संत्रास, विश्वासघात, अपमान, अवरोध, निंदा से मिलना ही
यदि कवि होने की शर्त है तो काश मैं कवि न होता !
फिर सोचता हूँ, इसीलिये बहुत कम कवियों के नाम स्मृति में आते हैं,
बस यही समझने में पूरी उम्र निकल गयी, अब मैं बता सकता हूँ
पूरे विश्वास से कवि साधरण दिखते हुए असाधारण क्यों होता है ? 
   

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  

  



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