शनिवार, 18 अप्रैल 2020

भोलापन


भोलापन  भी  है   दुःखदायी
खेल को समझा  प्रेम मितायी
मतलब साध लिए जब मुझसे
तब  मेरी   औकात  दिखायी

सच  है  मेरा   गीत  नहीं है
दिखता है पर  मीत  नहीं  है
मजबूरी   में    मुस्काता  हूँ
आज का  सच अतीत नहीं है

कैसे  रोता   भरे   नगर  में
किसे  बताता  फंसा अधर में
नस-नस सूज गयी दुःख से तो
दुःख निकला बन गीत शहर में

सब   सोचे   मैं   गाता  हूँ
सबका   दिल   बहलाता  हूँ
जन क्या समझे स्वर में रोना
यूँ  अपने   दुःख  खाता  हूँ

विश्वासों  ने  ही  लूटा  था
तब जाकर  ये उर टूटा  था
देवी समझ  जिसे  पूजा था
उसने ही मेरा  घर लूटा था


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com        

  

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