शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

व्यवस्था


एक तरफ लच्छेदार भाषण,
एक तरफ अटकती टूटी- फूटी बोली.
एक तरफ सलीकेदार वस्त्रों में सजे,
एक तरफ आधे बदन नंगे
मैले – कुचैले फटे कपड़ों में अधढँका बदन;
एक तरफ बड़ी-बड़ी घोषणाएं,
एक तरफ असंख्य छोटे-छोटे पेट;
एक तरफ संवेदना के प्रवचन
एक तरफ टिमटिमाती गीली आँखें,
एक तरफ स्वतंत्रता और
मूलभूत अधिकारों की बात,
एक तरफ जीवन की
भीख माँगते जुड़े हुए हाथ;
एक तरफ वातानुकूलित कक्षों से
संदेशों का सीधा प्रसारण,
एक तरफ नंगे पाँव
धूप में खड़े लोग !
एक तरफ राष्ट्र के विकास का
डंका पीटने वाले लोग,
एक तरफ रैन बसेरों में
भूख और ठण्ड से ठिठुरते लोग !
एक तरफ अट्टालिकाओं में
सुविधाओं से सजे विद्यालय
और उसमें तानाशाहों की संताने,
एक तरफ सरकारी विद्यालयों में
प्रतिदिन चलने वाले भंडारे में
खिचड़ी के लिए जाते गरीबों के बच्चे !
पुलिस ! केस की बात तो दूर
गरीब का आवेदन तक
ठीक से नहीं स्वीकारती, बल्कि
करती है उलटे सीधे दस सवाल !
और साहबों के लिए आधी रात को
खुल जाता है उच्चतम न्यायालय का द्वार
अगर यही व्यवस्था है
लोक के लिए महान व्यवस्था
तो निकृष्टतम क्या होगा ?
बस! विचारता हूँ !


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com        

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