मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

हिन्दी से नेह और उसकी कीमत


अपनों से दुत्कार मिली है
संघर्षों से राह मिली है
साहस की तो बात न पूछो
पत्थर जैसी साँस मिली है

पग-पग निंदा टांग खिंचाई
गले में अँटकी रहे रुलायी
फिर भी अधर भींच के बढ़ता
श्रम ऐसा हड्डियाँ गलायी

हार नहीं मानी जब मैंने
दुःख गुस्सा होकर चिल्लाया
कान दिया ना तिस पर मैंने
यूँ भागा जैसे बौराया

स्वाभिमान का किया न सौदा
टूट गया था मेरा घंरौदा
कसे फब्तियाँ लोग ही अपने
अपनों ने ही मुझको रौंदा

पर मन ने जो ठानी थी
सो अपने मन की मानी थी
अपने शर्तों पर जीने की
कीमत हमें चुकानी थी  

मित्रों ने भी ढेले मारे
एक नहीं बहुतेरे मारे
डिगा सके ना फिर भी मुझको
बगल झांकते शर्म के मारे

पर कुछ मित्र बहुत प्यारे थे
सबसे अलग बहुत न्यारे थे
अपने हिस्से में से देते
उनकी आँखों के तारे थे

कीमत बड़ी चुकायी  थी
फिर आज़ादी पायी थी
भोग छोड़ के बना था जोगी
बहुतों ने तब कहा था ढोंगी

हिन्दी पर खुद को वारा है
घर भर की इच्छा मारा है
दर-दर जाकर शब्द चुने हैं
तानों से मुझको तारा है

गहने पत्नी के बेचे थे
आँसू से खुद को सींचे थे
मंचों पर जब धूर्त जमें थे
हिन्दी लेकर हम नीचे थे

जीवन बीमा बंद हो गया
बिटिया का भी भाग्य था छीना
पत्नी थी ताना दे बोली-
इसको कहते हो तुम जीना

पुष्पगुच्छ से घर नहीं चलता
बच्चों का भी पेट न पलता
ऐसे सम्मानों का क्या है
इन शालों से पैर न ढंकता

सब स्मृतिचिन्ह बेंच के आओ
मगर आज तुम दूध ले आओ
हतप्रभ था पलकों में आँसू
देख रहे क्या जाकर लाओ

पत्नी ने फटकारा था
इज्जत बहुत उतारा था
शब्दों के साधक को उसने
शब्दों से ही मारा था

उस दिन एक प्रतिज्ञा की थी
खुद से ही दृढ आज्ञा ली थी
हिन्दी से मैं महल बनाऊँ
तब जाकर कहीं ‘पवन’ कहाऊं

खुद से बरसों बरस लड़ा था
गिर-गिर के मैं हुआ खड़ा था
कितनों ने अपमान किये थे
पत्थर सा चुपचाप पड़ा था  

रिश्ते नाते छूट गये थे
अच्छे धागे टूट गये थे
हिन्दी से मैं पेट भरूँगा
सुनकर कितने रूठ गये थे

हिन्दी भी बरसों अजमाई
सालों साल मुझे तरसाई
स्कूटर भी भेंट चढ़ गया
भूखे पेट बहुत तड़पाई

मैं पागल प्रेमी हिन्दी का
उसके माथे की बिंदी का
प्यार किया तो ब्याह रचाया
मान के साथ उसे घर लाया

मस्तक आज जो ऊँचा है
संघर्षों   से   सींचा   है
मुझे झुकाने वालों का सर
खुद से खुद ही नीचा है

फिर जब प्यार की बारी आयी
खुशियाँ बारी – बारी आयी
हिन्दी संग दम दम दम दमका
जीवन में ख़ुशहाली आयी

खुशियों का फिर ढेर लग गया
हरियाली का पेड़ लग गया
हिन्दी यूँ प्रसन्न हो बरसी
समृद्धि का बसेर लग गया

सब कुछ खोकर के है पाया
हिन्दी ने फिर गले लगाया
जोर से रोकर के फिर गाया
अच्छा दिन हिन्दी संग आया

ये हिन्दी का बच्चा है
हिन्दी जैसा सच्चा है
ये सुनकर के खुशी है होती
इतना कम क्या अच्छा है



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८ 







नज़रिया चोरावाला .... एक अवधी प्रेम गीत


नज़रिया चोरावाला करेजा कै चोर हो
झुठवै मचावै जी ढेर सारा सोर हो
कईसे, कहाँ, केसे होई जाई कब हो
नेहिया पे कउनो भी चले नाहीं जोर हो

नेहिया के महिमा कै नाहीं कउनो छोर हो
गावल करी तS हो जाई भोर हो
जेतना छुपावा खुलत जाला वतना
बिना कुछ कहे ही हो जाला सोर हो

महकाला अइसे जइसे थोड़ा–थोड़ा झोर हो
चुम्बक सा खींच लेला ऊ अपने ओर हो
पथरो पे दूब नेहिया देले उगाय हो
चाहे कइसनों केहू होवै, केतनो कठोर हो

प्यार में तS हिल जाला सनम पोर-पोर हो
बिना बदरी के नाचे मन जइसे मोर हो
नेहिया मिलल है जेके बड़ा भागसाली
जिनगी में ओकरे तS हो जाला अजोर हो



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

कुछ और नये खयाल


कोई उपकार नहीं चाहिए
कोई पुरस्कार नहीं चाहिए
मेरे पसीने भर का बस उतना
मुझे उधार नहीं चाहिए

लोगों को बहुत कुछ लगता है लगने दो
कौन क्या कैसे समझता है समझने दो
तुम अपनी धुन में रहो बस इतना समझो
ये दुनिया एक दीपक है इसे जलने दो

ये जलेंगे तो उजाले देंगे
करोगे प्यार तो छाले देंगे
फायदा अधिक जलने वालों से
आगे बढ़ने दो यही मशालें देंगे 

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८  

सोमवार, 23 दिसंबर 2019

छेड़ो कोई नयी


छेड़ो कोई नयी बात वो पुरानी हो गयी
इतनी हुई  पुरानी  कि कहानी हो गयी

गम को झटक के जुल्फ सी उड़ने लगी है वो
हँसती है बिना बात की दीवानी हो गयी

हर बात का ज़वाब वो देती थी ही खुलके
पूछा हुआ  क्या प्यार पानी-पानी हो गयी

बच्ची वो कल तलक जो हर बात पर हँसती
अब जिम्मेदारी आते ही वो नानी हो गयी

अपने पे पड़े तो उसे कुछ सूझती नहीं
देती सलाह  ऐसे  जैसे ज्ञानी हो गयी

वो आम सी लड़की थी उसे प्यार क्या हुआ
सारी कहानियों  में  पवन  रानी  हो  गयी



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

ये जग दिल को दुखाना चाहता है


ये जग दिल को दुखाना चाहता है
मगर दिल भी लगाना  चाहता  है

तुम्हारे  जान का दुश्मन  भी होके
तुम्हें  अपना   बताना  चाहता है

जो खुद ही दूर  तुमसे हो गया है
गरज पर  पास आना  चाहता  है

कभी लूटा था जिन अपनों ने मुझको
बलंदी आयी तो अपना जताना चाहता है

वो दुश्मन ठीक है दुश्मन ही रखो
सलीके  से   निभाना  चाहता  है

कौन  वो  प्यार  पाना  चाहता है
कहो सच  वो  सताना  चाहता  है

ज़ख्म हर बार ही तुमको दिखाता
बचो  तुमको  डराना  चाहता  हूँ

बताये बिन ही वो घर छोड़ आया
तो सच तुमको दिवाना  चाहता है

हुये  मकबूल  तो  बदला  पवन  वो
वो  दिल  का  राज पाना  चाहता है



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

मुक्तक 20 दिसम्बर 2019 के दिन लिखा मुक्तक




बहुत  आसान  है  बातें  करना
किसी की खुशियों में रातें करना
मगर  इंसानियत  तो ये  कहती
जहाँ भर  के लिए इबादतें करना

जिन्दगी फ़क़त है मजहब नहीं
जिन्दगी फ़क़त है करतब नहीं
जिन्दगी प्यार है इंसानियत है
जिन्दगी फ़क़त है मतलब नहीं

जिन्दगी  में  जो  भाई  चारा हो
फिर तो हर रिश्ता ही प्यारा न्यारा हो
सदाचरण का पालन जो होने लगे
फिर तो सुखदायी संसार हमारा हो

क्रोध पराजित हो  जाएगा
सहनशील यदि हो जायेगा
यदि सबको सम्मान दिया तो
सहज ही पूजित हो जाएगा

अंदर बाहर स्वच्छ रहे तो
अपने कर्म में दक्ष रहे तो
जीवन कठिन सरल होगा फिर
सच्चाई  के  पक्ष  रहे तो

जो परहित की बात करोगे
प्रीती अधर पर साथ धरोगे
बिगड़े काम भी बन जायेंगे
सबके दिल पर राज करोगे

प्रकृति को अगर सताओगे
प्रदूषण  यदि   फैलाओगे
मुश्किल होगा जीवन फिर
जीते  जी   मर  जाओगे

सब मिलकर आवाज़ लगाओ
पेड़ लगाओ जल को बचाओ
इनके  होने  से  हम  होंगे
चलो न जन-जन को समझाओ

समरसता की बात चली है
वैसे तो ये  बात  भली है
फ़क़त बात की बात न पूछो
जाने कितने  बार छ्ली है

ये खुद  को  समझाना है
एक दिन सबको जाना है
फिर तेरा मेरा क्या करना
जन जन को बतलाना है

स्वास्थ्य  गया  तो आ जाएगा
धन भी  गया  तो आ जाएगा
एक चरित को जतन से रखना
यह  जो   गया  ना  आयेगा  

थोड़े में  खुश रहना सीखो
अपने ढंग से जीना  सीखो
नकल तुम्हें ही खा जायेगी
जो हो  जैसे दिखना सीखो

यौवन मिला तो भोगी होगा
मिर्च  खटाई  रोगी   होगा
सच से प्रेम किया हो जिसने
दुःख छल मिला तो योगी होगा


आडम्बर से भला न होगा
किसको इसने छला न होगा
दर्पण से गर सही रहे तुम
झूठ का जादू चला न होगा



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
   





मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

जिसे तुम ख़ास कहते हो


जिसे तुम ख़ास कहते हो तुम्हारा भ्रम रहा होगा
जरूरत  ना रही  होगी किनारा  कर लिया होगा

जिसे नेकी हो तुम समझे वो मजबूरी भी हो सकती
जो खाना खा रहे हो कल की शादी  का बचा होगा

ये  दुश्मन  हैं  बचो इससे  जरुरी  है  नहीं  वो हो
कि हो सकता है वो दुश्मन कि जिसने ये कहा होगा

आज का प्यार बस यूँ ही इसे दिल पर नहीं लेना
जमाने  में  जरुरी ना  जिसे  चाहो  पिया  होगा

बस उसके नाम  पर अक्सर अधूरे काम छोड़े हैं
वो तुमसे रूठ गया खुश रहो अच्छा किया होगा

खालिस सच है प्यास समंदर बुझा नहीं सकता
खुशी  मिलेगी  गर   अब  भी  दरिया  होगा



पवन तिवारी
संवाद ७७१८०८०९७८

  

मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

नया हूँ तो नये


नया हूँ तो  नये  तेवर  में बात  कहता हूँ
दिन को मैं वार और रात को शब कहता हूँ

मेरी मकबूलियत  का राज सुनो कहता हूँ
मैं ही वो ख़ास हूँ जो आम बात कहता हूँ

एक ही  बात  को पूछे  हो  कई लहजे में
मैं भी फिर रात को हर बार रात कहता हूँ

उनके  चलने को  कुछ एक ठुमक कहते हैं
मेरा अंदाज अलग  मैं तो  धमक कहता हूँ

ऐसा एक  तबका है स्तम्भ बना फिरता है
मुझसे पूछे हो तो सुन लो दलाल कहता हूँ



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत  

सोमवार, 2 दिसंबर 2019

शब्द कुछ को रुलाते हैं.


शब्द कुछ को रुलाते हैं.
शब्द कुछ को गुदगुदाते हैं.
कुछ को मौन करा देते हैं.
कुछ को बोलने पर मजबूर कर देते हैं.
कुछ को गुस्सा दिलाते हैं.
कुछ को भागने पर मजबूर कर देते हैं .
कुछ को पास बुलाते हैं.
कुछ ऐसे भी हैं जिन पर,
शब्दों का कोई असर नहीं होता.
मैंने कईयों से उनके बारे में पूछा,
सब मौन साधे आगे बढ़ जाते.
एक दिन खीझ कर एक पागल
से पूछ लिया, वह जोर से हँसा;
और बोला- संसद जाओ !
तब से मैं मौन हूँ !


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक- पवनतिवारी@डाटामेल.भारत