सोमवार, 28 अक्टूबर 2019

कुछ ख़याल


आप भी सामने से देखने वाला नायाब धोखा खायें हैं
खंजर घोंपा है उसने आप समझते हैं सीने से लगाये हैं

ये रूतबा ओहदा शानो - शौकत और एक चीज पाये हैं
इस लोकतंत्र में ख़ाक छानी है और गालियाँ भी खाये हैं

आदमीयत की ढोल क्या पीटें खुद ही सुन लो ना
शहर  जल  रहा था  और  वे हँसते हुए आये हैं

प्यार में किस कदर किस मुकाम पर कहां लाये हैं
दूसरे के हो भी नहीं सकते कुछ इस कदर सताये हैं

सौ मरे पचास घर जले कुछ के बलात्कार हुये बाकी ठीक
और क्या कहूं उनके बारे में जो इस कदर सच बताये हैं

ये जो रुलाई में फ़क्त सिसकियाँ ही सिसकियाँ हैं
पवन  जज्बात  को  हम  इस  कदर  दबाए हैं

पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८ 

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