शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

मित्र


जो भी मिलता  है  बताते मित्र हैं
पता चलता दुःख में वे तो चित्र हैं
मित्र परिचित  में किये अंतर नहीं
वे हैं  केवल  गंध  मित्र तो इत्र हैं

परिचितों को मित्र कह फँसते रहे
और  मौकों  पर  वही हँसते रहे
मित्र केवल  उँगलियों पर होते हैं
शेष मौकों  पर तो बस डसते रहे

कहने  को  वैसे तो मित्र हजार हैं
किन्तु सच में होते बस दो-चार हैं
बिन कहे  माँगे सदा जो साथ हो
कहो ना कहो वो ही सच्चा यार है

इसका ना कोई रक्त से सम्बन्ध है
ये तो  निज के प्रेम का अनुबंध है
जब कोई सम्बन्ध काम आता नहीं
मित्र  आकर करते सब ही प्रबंध हैं

पवन तिवारी
संवाद - 7718080978
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


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