सोमवार, 15 जुलाई 2019

उस गली से वो


उस गली से वो क्या जाने आने लगे
बेसुरे भी गली  के  गुनगुनाने  लगे

आया दुःख तो हुनर कुछ ऐसा दिया
रोते - रोते ही हम ग़ज़ल गाने लगे  

आखिर  ऐसा  हुनर  भूख देकर गयी
अपने गम से ही खुद हम कमाने लगे

क्या  कहूँ  अपनी ही शर्म के बारे में  
खुद से खुद मिलने में ही जमाने लगे

अपनी अदा, हुनर के बारे में क्या कहूँ
कितने ही  बिन बुलाये चले आने लगे

साहब नहीं रहा बस इतना ही सुन के
दोस्त  भी  चुपचाप उठ के जाने लगे

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें