शनिवार, 13 जुलाई 2019

प्रेम में बस स्वार्थ की ही वर्जना है


प्रेम  में  स्वार्थ की केवल वर्जना
प्रेम ही हृदय की सविनय गर्जना
प्रेम के प्यासे मानव नहीं देव भी
प्रेम  उदात्त  है  अप्रतिम अर्चना

प्रेम का रूप जल और सरिता, धरा
प्रेम  लौकिक भी है प्रेम है अपरा
जग भी तो प्रेम का एक अनुबंध है
जग में समृद्ध वही प्रेम जिसका खरा

प्रेम क्या है सुनो आम धनश्याम है
प्रेम  वाला  सुखी  आठों  याम हैं
प्रेम  धन  से खरीदा नहीं जा सके
प्रेम  का  प्रेम  ही  केवल दाम है

डाह के रोग को  प्रेम ने मारा है
मीराबाई  को भी प्रेम ने तारा है
प्रेम की चाह में देव भी तडपे हैं
प्रेम पावन परम गंग की धारा है

प्रेम  सारे  कलुष को भी हर लेता है
सारे  आनन्द  जीवन में भर देता है
जग से मुक्ति का भी प्रेम ही मार्ग है
प्रेम जीवन  की हर नाव को खेता है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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