गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

क्या प्रशंसा करूँ


क्या  प्रशंसा  करूँ  तुम अकथ्य  प्रिये
प्रेम  पावन  है  अपना ये  तथ्य प्रिये
कोई   कारण   सफाई      देनी   हमें
प्रेम  अपना  समर्पित  है  सत्य  प्रिये

प्रेम   का  मूल  तो  मात्र  विश्वास  है
प्रेम के  श्वाँस में प्रभु का  निवास  है
बस   समर्पण    विश्वास  स्थिर  रहे
सारे  जीवन  में  उल्लास  का वास  है

मिले जो भी  सहज उसको स्वीकार लो
प्रेम  भी  धर्म  है  ह्रदय  में धार  लो
काटना  है  नहीं   जीवन  जीना  हमें
चित्त  में  प्रेम  को समझ ओंकार लो

प्रेम का उर में जब से  ये चढ़ मद गया
अपना  जीवन  गृहस्ती में  यूँ नध गया
हम  वसंत  से  खिलते  हुए   जा  रहे
प्रेम क्या सध गया  सारा जग सध गया

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com


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