मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

क्या संबोधित करूँ


क्या संबोधित करूँ तुम कहो सुलोचना
उर  कहे   करता   रहूँ  मैं  अर्चना
तुम हो अनुपम करूँ क्या मैं वर्णन प्रिये
देखते  ही  शिथिल  हो  गयी चेतना

प्रति प्रहर शिव से तुम्हारी करूँ प्रार्थना
बिन तुम्हारे  ही हो जाऊँ मैं व्यर्थ ना
मुझको अपना  बनाने का वर दो प्रिये
प्रेम  में  इतनी  सी  मात्र अभ्यर्थना

प्रेम कैसा जो सुधि का न कर ले हरण
उर  पखारे  समर्पित  हो उसके चरण
जो  कुछ  भी  हुआ  ये  मेरे साथ है
प्रेम  सच्चा  यही  कर लो  अनुकरण

तुम  मिली जो हमें हम हुए सार्थक
तुम ही जीवन की हो सच्ची प्रदर्शक
मिला क्या प्रेम सब अर्थ ही मिल गये
शेष  अभिलाषाएँ  हो गयी निरर्थक


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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