शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

सोहदागिरी मंहंग परिजाई - अवधी रचना


अबहिं उमरि पढ़ले कै हउवै,  कैल्या मन से पढ़ाई बाबू
नाहित गारा - माटी करबा चली न फिर इ ढिठाई बाबू

सोहदागिरी मंहंग परिजाई जुल्फी जिन  सोहराई बाबू
तोहरो घरे बहिनि बिटिया हइं होई जाई रुसवाई बाबू

रोज–रोज कै नुक्ता चीनी, गइल न तोहर ढींठाई बाबू
कहिओ चढ़ी गइला जौ हत्थे , कोई बहुत कुटाई बाबू

अबहूँ खइरि है कहल जात है कैल्या निज सुधराई बाबू
साईत बिगड़ि गइल जौ कहिवो करबा माई - माई बाबू

हरदी लगिगै छोड़ लड़िकपन , आगे करा सोचाई बाबू
नाहित  मेहरी  छोड़ी के जाई , होई बहुत हँसाई बाबू

गलती कइल्या मानिल्या वोके अइसे जिन गुर्राई बाबू
करम गती भोगही के पड़ी इहाँ , नाहीं बाएँ जाई बाबू

अइसै  इज्जति  नाय मिलैले, होले  नाय  बड़ाई बाबू
छोट - बड़े कै इज्जति करबा  करमै मान दियाई बाबू

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
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