मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

अहंकारी



मैं घोषित कर दिया गया हूँ अहंकारी
उदण्ड और घमंडी
जब भी होते हैं वे इकट्ठा
किसी सार्वजनिक जगह पर,
गली , गोष्ठी या चाय पर
होती है बस मेरी चर्चा
आ ही जाता हूं अनायास चर्चा में
फिर कोई भी विषय हो
विषयांतर हो ही जाता है
न जाने कब शुरू हो जाती है
मेरे व्यक्तित्व की आलोचना
दुर्भाग्य से आता दिख गया
उनकी मंडली को
मेरी आलोचना के उद्दात स्वर
बदल जाते हैं भुनभुनाहट में
और घूरती आंखें
झपकने लगती हैं तेजी से
उन्हें डर है सच से ,
उन्हें डर है स्वाभिमान से
इन दोनों से है उनकी दुश्मनी
और वे दोनों ही बसते हैं मुझमें
उनकी तरह उनकी रचनाएं भी डरी हुई
और सहमी हैं खुद उन्हीं से
वे चारणों के शब्दों की तरह
झूठ के साथ मुँह से लड़खड़ा फूटती हैं
मेरी तनी हुई सधी रीढ़ की रचनाओं से
होती है उन्हें चिढ़
मेरी रचनाएं गाती हैं आम आदमी का स्वर
मेरी रचनाएं थामती हैं संघर्ष का दामन
मेरी कविताओं में भिंची हुई मुट्ठियों को
कहते हैं वे उद्दंड और मुझे अहंकारी
कहते हैं घमंडी और भी बहुत कुछ
कविताओं को ही
खारिज कर देते हैं कविता से
मुझे बुरा नहीं लगता
उनकी इन बातों का
बल्कि होता हूँ आश्वस्त
कि मैं और कविता
बढ़ रहे हैं सही पथ पर
इनकी आलोचनाएं हैं
एक उद्दात प्रमाण

पवन तिवारी
सम्वाद - 7718080978
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com

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