सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

जग रूठा है सब छूटा है














जग रूठा है, सब छूटा है
बस शब्द लिए फिरता हूँ
स्वाभिमान की रक्षा खातिर
मैं थोड़ा - थोड़ा मरता हूँ

मैं  गिरता  हूँ, मैं उठता
मैं मारा - मारा फिरता हूँ
पर शब्द मिले जबसे मुझको
मैं पंछी सा बन उड़ता हूँ

ज़िंदा  हूँ, मुर्दा  सा  था
शब्दों का  नया परिंदा हूँ
शब्दों के  तेवर  में बोलूँ
जग की दृष्टि में निंदा हूँ

मैं बंजारा , मैं  अनायास
कुछ कहते थे, मैं आवारा
जब शब्दों ने मेरे गीत गढ़े
सुर सजे कहा सबने तारा

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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