शनिवार, 2 जून 2018

आज - कल आवारगी कर रहा हूँ


आज - कल आवारगी कर रहा हूँ
बेपरवाह और आलसी भी हो गया हूँ
और रहने लगा हूँ अपनी अकड़ में
घर में अपने ही काम से काम
चोरी करने लगा हूँ.

चुराता हूँ अपने कामों बारीक़ नज़र
खुद को ही छलता हूँ शातिर की तरह
आज उस वट वृक्ष के नीचे अकेले में
चल रहा था विचार, मैं सचमुच में
ऐसा ही था क्या थोड़ी देर बाद
मैंने मान भी लिया, हाँ मैं ऐसा ही हूँ

तुम्हारे न रहने पर ये सब उभर आये हैं
अपने असली रूप में तुम थी तो
तुम्हारी आड़ में सब छुप जाते थे
अब कोई जगह नहीं इनके छुपने की
तुम्हारी याद बहुत आती
जब कहता हूँ अकेले में
तब या तो मैं बर्तन माँज रहा होता हूँ
या कपड़े धो रहा होता हूँ
कभी कभी पालक छाँटते वक़्त भी
आती है तुम्हारी याद
आज सोच रहा था
मैं तुम्हें काम के ही वक़्त
याद कर पाता हूँ या
आती है तुम्हारी याद
मैं स्वार्थी हूँ
मैं नहीं करता तुम्हें प्यार
पर जब पिछले के पिछले इतवार को
गरम जिलेबियाँ हाथ में उठाया
और तुम याद आयी तो
मैनें उन जलेबियों को
वैसे ही दोने में रख कर उठ गया था
वड़ा पाव जो तुम्हें बहुत पसंद है
आधा ही खाया था तुम्हारी याद आ गयी
और पूरा न खा सका, दोस्त ने पूछा था,
अच्छा नहीं है क्या,
मैं उत्तर में बस ! सर झुका कर
आगे बढ़ गया था,
बीते शनिवार को स्टेशन के पास
मशहूर चाट वाले के पास गये थे
मेरे दोस्त चाट खिलाने
पता है तब क्या हुआ था
तब चाट वाले ने गरमा-गरम
चाट से भरा दोना मेरी हथेली
पर रखते हुए कहा था 
और तीख़ा चाहिए होगा तो बोलिएगा साहब
और तीख़ा शब्द सुनते ही मेरे कान
तुम्हारी स्मृतियों में खींच ले गये
 और मेरे हाथ से चाट का दोना छूट गया
मेरा कुर्ता पायजामा
दोस्तों की पैंट शर्ट चाट के मसालेदार
चकत्तों से बदरंग हो गयी थी
और सब हक्के बक्के
चाटवाला डरते हुए बोला था
ज्यादा गर्म था क्या साहब,सॉरी
और हाँ बागीचे में जहाँ तुम मुझे
अक्सर ले जाना चाहती थी
कल मैं एक मित्र के साथ गया था
द्वार पर पहुँचा कि तुम याद आयी
और मैं लौट आया
मित्र के नाराज़ होने के बावज़ूद
आज - कल देर रात तक नींद नहीं आती
पता है क्यों  तुम्हारी स्मृतियाँ जो घेरे रहती हैं
तुम कुछ कहोगी ......ये क्या है ?


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