शनिवार, 2 जून 2018

तुम्हारी स्मृतियाँ


तुम्हारी स्मृतियों के वेग ने
अधरों पर ऊष्मा बिखेर दी
एक गर्माहट लसलसा उठी
जैसे एक दूसरे के अधरों ने
भींच लिया हो पूरी शक्ति से
भुजाएँ पाश की मुद्रा में
अकड़ गयी हों
प्रस्फुटित हो गयी इतनी ऊर्जा
जैसे धृतराष्ट्र भीम की
अस्थियों का बना रहे हों चूरा
साँस हिय से चढ़कर गले में
फँसकर छटपटा रही हो
नशे में तन गयी हों
दृग में रक्तिमा का आभास
उभर आया हो



और अकस्मात कुर्सी से जैसे उठाकर
बिछावन पर पटक दिया हो
और गले में अँटकी साँस
सर्र से नथुनों को फटकारते हुए
फुर्रर हो गयी
रक्तिम नयनों के दोनों कोरों से
नमकीन जलधार कानो की ओर
ढल गयी चुपचाप
उनमें भी था एक ताप
मैंने मूँद ली आँखें और
दौड़ने लगी साँसे
मैं हो गया निढाल
तुम्हारी स्मृतियों का ज्वार
मुझे कर देता बेबस
तब पर भी मुझे प्यारी हैं
तुम्हारी स्मृतियाँ

पवन तिवारी
सम्पर्क ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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