मंगलवार, 22 मई 2018

मज़बूर


बहुत मजबूर हैं इतने कि
कह भी नहीं सकते
बेक़सूर हैं

वो तो ठी,क से आदमी भी नहीं हैं
क्या कहें पैसे हैं
सो हुज़ूर हैं

आदमी आदमी होने का कर चुका रहा है
और वे कर वसूल रहे हैं
जिन्हें है आदमियत से बेसाख्ता नफ़रत
पर वे भी रहते हैं आदमियत के मुखौटे में

आख़िरी सच यही है
आदमी का आदमी होना ही क़ुसूर है
बाकी सब बेक़ुसूर हैं


पवन तिवारी

सम्पर्क - ७७१८०८०९७८
poetpawan50 @gmail.com

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